चंद्रो बस से उतर कर अपनी सहेलियों के साथ जैसे ही गांव की ओर चली, उस के कानों में गांव में हो रही किसी मुनादी की आवाज सुनाई पड़ी.
‘गांव वालो, मेहरबानो, कद्रदानो, सुन लो इस बार जब होगा मंगल, गांव के अखाड़े में होगा दंगल. बड़ेबडे़ पहलवानों की खुलेगी पोल, तभी तो बजा रहा हूं जोर से ढोल. देखते हैं कि मंगलवार को लल्लू पहलवान की चुनौती को कौन स्वीकार करता है. खुद पटका जाता है कि लल्लू को पटकनी देता है. मंगलवार शाम4 बजे होगा अखाड़े में दंगल.’‘‘देख चंद्रो, इस बार तो तेरा लल्लू गांव में ही अखाड़ा जमाने आ गया,’’ एक सहेली बोली.
‘‘धत्... चल, मैं तुझ से बात नहीं करती,’’ चंद्रो ने कहा.
‘‘अब तू हम से क्या बात करेगी चंद्रो. अब तो तू उस के खयालों में खो जाएगी,’’ दूसरी सहेली बोली.
चंद्रो ने शरमा कर दुपट्टे में अपना मुंह छिपा लिया. तब तक उस का घर भी आ चुका था. वह अपनी सहेलियों को छोड़ कर तेजी से घर के दरवाजे की ओर बढ़ गई.
चंद्रो का पूरा नाम चंद्रवती था. वह कभी छुटपन में लल्लू की सहपाठी रही थी, तभी उन के बीच प्यार का बीज फूट गया था. चंद्रवती को चंद्रो नाम देने वाला भी लल्लू पहलवान ही था.
चंद्रवती को पढ़नेलिखने, गीतसंगीत और डांस में ज्यादा दिलचस्पी थी. उस के अरमान बचपन से ही ऊंचे थे. लल्लू पहलवानी का शौक रखता था. पढ़ाई में उस की इतनी दिलचस्पी नहीं थी, जितनी अखाड़े में जोरआजमाइश करने की.
फिलहाज, चंद्रवती हिंदी साहित्य में एमए कर रही थी. यह उस का एमए का आखिरी साल था. उस का कालेज गांव से 14-15 किलोमीटर दूर शहर में था. अपनी सहेलियों के साथ वह रोज ही बस से कालेज जाती थी. उस के मातापिता उस के लिए अच्छे वर की तलाश कर रहे थे.