शिखा दौड़ते हुए विनय के पास आई और बोली, ‘‘क्या हुआ सरगम को? आपने मुझे फोन क्यों नही किया? बुखार कैसे आ गया उसे.’’
शिखा सरगम को देखने के लिए उस के कमरे मे जाने लगी तो विनय ने उस का हाथ पकड़ कर उसे सोफे पर बैठा दिया और पानी का गिलास उसे देते हुए कहा, ‘‘कुछ नहीं हुआ है सरगम को, वह बिलकुल ठीक है और तुम से कितनी बार कहा है कि इतनी जल्दी टैंशन में मत आया करो. पहले ही बीपी ज्यादा रहता है.’’
शिखा ने कहा, ‘‘पर मम्मी ऐसा क्यों बोल रही हैं?’’
‘‘उफ शिखा मां की आदत तुम जानती हो न किसी भी बात को बढ़ाचढ़ा कर बोलने की उन की पुरानी आदत है. तुम परेशान मत हो. सफर से आई हो. आराम करो. मैं हौस्पिटल जा कर आता हूं... शाम को मिलते हैं.’’
शाम को विनय के अस्पताल से लौटने के बाद शिखा और विनय साथ बैठ कर चाय पी रहे थे, तो विनय ने शिखा से पूछा, ‘‘तुम्हारी मीटिंग कैसी रही?’’
‘‘अच्छी रही. आप को कुछ और भी बताना है,’’ बोल कर शिखा ने विनय को अतुल के बारे में सब बताया, ‘‘मुझे पूरा यकीन है वह लड़का अतुल जरूर एक दिन बहुत बड़ा हार्ट स्पैशलिस्ट बनेगा.’’
विनय ने शिखा से कहा, ‘‘बहुत अच्छा किया तुम ने उसे अपना कार्ड दे कर, उसे शिक्षित होने के लिए जो भी मदद चाहिए होगी हम उस तक पहुंचाने की पूरी कोशिश करेंगे.’’
शिखा ने कहा, ‘‘जी, मैं ने भी यही सोच कर उसे अपना कार्ड दिया है.’’
इस बात को 1 साल बीत गया था. अचानक एक दिन शिखा के फोन की घंटी बजी.