सुमित को 4 लोगों ने पकड़ रखा था. उस के सामने नेहा अपने मम्मीपापा के साथ खड़ी डरीसहमी नजर आ रही थी.
अपनी और नेहा व उस के परिवार की इज्जत को ताक पर रख सुमित चिल्ला रहा था, ‘‘आई लव यू, नेहा. तुम मुझ से दूर होने की सोचना भी मत... तुम्हारे बिना मैं जिंदा नहीं रह सकता...’’
उस ने अपने को आजाद कराने के लिए पूरी ताकत लगाई, तो अपना संतुलन खो कर गिर पड़ा. भीड़ में उपस्थित कई लोग मुसकराने लगे.
क्लब सैक्रेटरी ने नेहा के पापा से कहा, ‘‘आप मेरे साथ आइए, सर. क्लब में ऐसा गंदा, बेहूदा व्यवहार सहन नहीं किया जाएगा. मैं सख्त कार्यवाही करूंगा.’’
‘‘तुम मेरे पास रुको, नेहा,’’ सुमित ने खड़े हो कर उन सब का रास्ता रोकने की कोशिश की.
‘‘इसे बाहर का रास्ता दिखाओ और जब इस के पिताजी आएं, तो उन से कहना कि मुझ से मिलें,’’ ऐसी हिदायत क्लब के सुरक्षाकर्मियों को दे कर क्लब सैक्रेटरी उन तीनों को लाइब्रेरी में ले गया. चारों सुरक्षाकर्मी सुमित को जबरदस्ती बाहर ले चले.
‘‘मुझे छोड़ो, यू इडियट्स. मेरी भी यहां रुकने में कोई दिलचस्पी नहीं है,’’ सुमित ने झटका दे कर खुद को उन की पकड़ से आजाद किया और डगमगाते कदमों से मुख्यद्वार की तरफ बढ़ा.
‘‘सुमित, रुको,’’ वह मेरी बगल से गुजरा तो मैं ने उस का बाजू थाम कर उसे रोकने का प्रयास किया.
‘‘मुझे छोड़ो, अनु,’’ उस ने तेज झटके से मेरा हाथ हटाया और गुस्से से भरी आवाज में बोला, ‘‘यह मरेगी मेरे हाथों.’’
मैं ने पल भर को उस की आंखों में झांका था. आंखों में मुझे जो वहशीपन नजर आया, वह इस बात का सुबूत था कि यह इनसान इस वक्त किसी के भी साथ मारपीट और कैसी भी बदतमीजी कर सकता है.