क्यों नहीं कोई मेरा अपना मुझे बेइज्जत होने से बचाने आया? मम्मीपापा कहां थे? तुम कहां थीं? वे सब जो लोग मुझ से दोस्ताना अंदाज में हंसतेबोलते हैं, उन्होंने मेरा साथ क्यों नहीं दिया?’’
‘‘तुम ने अरुण भैया को हमें फोन करने से क्यों रोका था, सुमित? हमें सूचना मिल जाती तो, तुम्हारे बंद होने की नौबत ही न आती,’’ मेरा स्वर भी रोंआसा हो उठा था.
‘‘अरुण भैया झूठ बोल रहे हैं. मैं ने बारबार उन्हें बुलाया, पर वे मुझ से मिलने से कतराते रहे... मैं बहुत गुस्सा हूं उन से.’’
‘‘अब न गुस्सा होओ और न ही दुखी. आज की रात को एक खराब सपने की तरह भूल जाओ, सुमित,’’ मैं ने कोमलस्वर मेंउसे समझाया.
‘‘इस रात को मैं कभी नहीं भूल सकूंगा, अनु... इतनी बेइज्जती... मेरा तो आत्महत्या करने का मन कर रहा है. कैसे मिलाऊंगा मैं लोगों से नजरें?’’ उस ने पीडि़त स्वर में कहा.
‘‘बेकार की बात मुंह से न निकालो सुमित,’’ मैं गुस्सा हो उठी, ‘‘तुम ने शराब न पी रखी होती तो जो हुआ है, वह कभी न घटता.’’
‘‘जिसे अपनों का प्यार नहीं मिलता, शराब ही तो उसे जीने का सहारा देती है, अनु.’’
‘‘वाह, क्या डायलाग बोला है,’’ मैं व्यंग्यात्मक लहजे में बोली, ‘‘गालियां देने व मारपीट करने के बाद नेहा से प्यार पाने की उम्मीद तुम कर कैसे सकते हो?’’
‘‘क्या नेहा... क्या पापा... क्या मम्मी... मैं किसी के लिए भी महत्त्वपूर्ण नहीं हूं, अनु. इन सब के गलत व्यवहार ने ही मुझे ज्यादा पीने की आदत डलवाई है,’’ वह गुस्सा हो उठा.
‘‘और पीने का नतीजा आज रात तुम ने देख लिया है. अब तो शराब पीने से तोबा कर लो, सुमित.’’