जो भी घोड़ी पर बैठा उसे रोता हुआ ही देखा है. घोड़ी पर तो हम भी बैठे थे. क्या लड्डू मिल गया, सिवा हाथ मलने के. एक दिन एक आदमी घोड़ी पर चढ़ रहा था. मेरा पड़ोसी था इसलिए मैं ने जा कर उस के पांव पकड़ लिए और बोला, ‘‘इस से बढि़या तो बींद राजा, सूली पर चढ़ जाओ. धीमा जहर पी कर क्यों घुटघुट कर मरना चाहते हो?’’
मेरा पड़ोसी बींद राजा, मेरे प्रलाप को नहीं समझ सका और यह सोच कर कि इसे बख्शीश चाहिए, मुझे 5 का नोट थमाते हुए बोला, ‘‘अब दफा हो जा, दोबारा घोड़ी पर चढ़ने से मत रोकना मुझे,’’ यह कह कर पैर झटका और मुझ से पांव छुड़ा कर वह घुड़सवार बन गया. बहुत पीड़ा हुई कि एक जीताजागता स्वस्थ आदमी घोड़ी पर चढ़ कर सीधे मौत के मुंह में जा रहा है.
मैं ने उसे फिर आगाह किया, ‘‘राजा, जिद मत करो. यह घोड़ी है बिगड़ गई तो दांतमुंह दोनों को चौपट कर देगी. भला इसी में है कि इस बाजेगाजे, शोरशराबे तथा बरात की भीड़ से अपनेआप को दूर रखो.’’
बींद पर उन्माद छाया था. मेरी ओर हंस कर बोला, ‘‘कापुरुष, घोड़ी पर चढ़ा भी और रो भी रहा है. मेरी आंखों के सामने से हट जा. विवाह के पवित्र बंधन से घबराता है तथा दूसरों को हतोत्साहित करता है. खुद ने ब्याह रचा लिया और मुझे कुंआरा ही देखना चाहता है, ईर्ष्यालु कहीं का.’’
मैं बोला, ‘‘बींद राजा, यह लो 5 रुपए अपने तथा मेरी ओर से यह 101 रुपए और लो, पर मत चढ़ो घोड़ी पर. यह रेस बहुत बुरी है. एक बार जो भी चढ़ा, वह मुंह के बल गिरता दिखा है. तुम मेरे परिचित हो इसलिए पड़ोसी धर्म के नाते एक अनहोनी को मैं टालना चाहता हूं. बस में, रेल में, हवाईजहाज में, स्कूटर पर या साइकिल पर चढ़ कर कहीं चले जाओ.’’