आज से 10-12 वर्ष पूर्व की ही तो बात है जब सर्दियां आते ही ऊन की दुकानें मोटी मोटी लच्छियों और ऊन के गुल्लों से सजने लगतीं थीं. घर के काम समाप्त करके महिलाएं ऊन और सलाई के साथ ही नजर आतीं थीं आज यद्यपि हाथ के बुने स्वेटर का चलन कुछ कम हो गया है परन्तु फिर भी स्वेटर बुनने के शौकीन अपने हाथों को रोक ही नहीं पाते. साथ ही फैशन कोई भी हो परन्तु कुछ लोंगों को बाजार के रेडीमेड स्वेटर की अपेक्षा हाथ के बुने स्वेटर ही पसन्द आते हैं.
आजकल तो ऊन से फैशनेबल स्टॉल, स्कार्फ, जैकेट्स, मोजे, और डेकोरेटिव आइटम्स भी बनाये जाने लगे हैं. छोटे बच्चों को तो आज भी माताएं हाथ के बने स्वेटर ही पहनाना पसन्द करतीं हैं. यदि आप भी बुनाई की शौकीन हैं तो ये टिप्स आपके मददगार हो सकते हैं.
-ऊन खरीदने से पहले किसके लिए और क्या बनाना है यह सुनिश्चित कर लें क्योंकि बच्चों के लिए गहरे रंग, बड़ों के लिए हल्के तथा लड़के लड़कियों के रंग भी अलग अलग होते हैं.
-स्वेटर के अतिरिक्त यदि कोई सजावटी सामान अथवा स्कार्फ, जैकेट आदि बनाना है तो भी ऊन खरीदने से पूर्व रंग और डिजाइन निश्चित कर लें.
-ऊन हमेशा आवश्यकता से कुछ अधिक ही खरीदें क्योंकि कम पड़ने पर अक्सर उसी शेड की ऊन मिलना मुश्किल हो जाता है.
-छोटे बच्चों के लिए फर वाली या फैशनेबल ऊन खरीदने की अपेक्षा वर्धमान या ओसवाल की बेबी वूल ही खरीदें क्योंकि यह एकदम नरम और बिना रोएं वाली होती है.
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