संडे था. फुटबौल का मैच चल रहा था. विपिन टीवी पर नजरें जमाए बैठा था. रिया ने कई बार कोशिश की कि विपिन टीवी छोड़ कर उस के साथ मूवी देखने चले पर वह कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा था.
बीचबीच में इतना कह देता था, ‘‘मैच खत्म होने दो, फिर बात करता हूं.’’ वहीं पास बैठी पत्रिका पढ़ती मालती बेटेबहू के बीच चलती बातें सुन चुपचाप मुसकरा रही थीं. सुधीश यानी उन के पति भी मैच देखने में व्यस्त थे. मालती को अपना अनुभव याद आ गया. सुधीश भी टीवी पर मैच देखना ही पसंद करते थे. मालती को भी मूवीज देखने का बहुत शौक था. बड़ी जिद कर के वे सुधीश को ले जाती थीं पर अच्छी से अच्छी फिल्म को भी देख कर वे जिस तरह की प्रतिक्रिया देते थे, उसे देख कर मालती हमेशा पछताती थीं कि क्यों ले आई इन्हें.
मालती ने चुपचाप रिया को अंदर चलने का इशारा किया तो रिया चौंकी. फिर मालती के पीछेपीछे वह उन के बैडरूम में जा पहुंची. पूछा, ‘‘मम्मीजी, क्या हुआ?’’
‘‘कौन सी मूवी देखनी है तुम्हें?’’
‘‘सुलतान.’’
मालती हंस पड़ीं, ‘‘टिकट मिल जाएंगे?’’
‘‘देखना पड़ेगा जा कर, पर विपिन पहले हिलें तो.’’
‘‘उसे छोड़ो, वह नहीं हिलेगा. तुम तैयार हो जाओ.’’
‘‘मैं अकेली?’’
‘‘नहीं भई, मुझे भी तो देखनी है.’’
‘‘क्या?’’ हैरान हुई रिया.
‘‘और क्या भई, मुझे भी बहुत शौक है. इन बापबेटे को मैच छुड़वा कर जबरदस्ती मूवी ले गए तो वहां भी ये दोनों ऐंजौय थोड़े ही करेंगे. हमारा भी उत्साह कम कर देंगे. चलो, निकलती हैं, मूवी देखने और फिर डिनर कर के ही लौटेंगी.’’