लेखक -अमन दीप
दहेज कहूं या सरेआम दी जाने वाली रिश्वत, बात तो एक ही है. चलिए, सारी लड़ाई ही खत्म कर देते हैं आज. आज सवाल भी खुद कर लेते हैं और उस का जवाब भी खुद दे देते हैं.
तर्क : शादी एक सम झौता है.
जवाब : चलिए, मान लिया कि शादी एक ‘सम झौता’ है. ‘डील’ कह लीजिए. सम झौता करने में शर्म आए न आए, सम झौता बोलने में शर्म जरूर आती है.
तो भैया, यह कौन सी डील हुई? डील में तो एक हाथ से लेना, एक हाथ से देना होता है. आप तो लड़की भी दे रहे और उस के साथ उस का ‘पेमैंट’ भी आप कर रहे. ऐसे कैसे चलेगा मायके वालो?
तर्क : लड़की पराया धन होती है.
जवाब : भई, जब लड़की है ही उन की, जिन को आप सौंप आए तो किस बात की ‘भुगतान राशि’ भर आए भाईसाहब?
लड़की है कि आप की पौलिसी? भरे जा रहे हैं बिना सोचेसम झे?
अपना धन भी आप देंगे, पराए लोगों का धन भी आप देंगे और झुकेंगे भी आप ही जीवनभर? खुद के लिए तालियां भी खुद ही बजा लेंगे न?
तर्क : हम यह सब सामान अपनी बेटी की सुखसुविधा के लिए दे रहे हैं.
जवाब : एक बात बताइए, जब सुखसुविधा का सामान आप को ही जुटा कर देना पड़ रहा है, तब या तो आप ने लड़का ही ऐसा देखा है जिस के पास खुद का कुछ सामान नहीं है तब तो ठीक है क्योंकि अपनी जिंदगी में लड़का पैदा कर के बस उन्होंने आप ही के ट्रक भर सामान भेजने का इंतजार किया है.