किताबों के पढने से जीवन में क्रांतिकारी बदलाव आता है. इससे न केवल अच्छी सोंच का विकास होता है बल्कि जीवन में आने वाली कठिनाईयों का मुकाबला कैसे किया जाय इसकी क्षमता का भी विकास होता है. वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी (आईएएस) और उत्तर प्रदेश के पर्यटन एवं संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव के रूप में कार्यरत मुकेश मेश्राम के करियर को देखे तो जीवन में किताबों के महत्व का पता चलता है. मुकेश मेश्राम मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले के वनग्राम बोरी गांव के रहने वाले है. इनके पिता प्राइमरी स्कूल में अध्यापक और मां खेतों में काम करती थी. मुकेश मेश्राम अपने घर से 5 किलोमीटर दूर स्कूल में पढने जाते थे. पढाई में अच्छे होने के कारण ग्रामीण प्रतिभा खोज परीक्षा की छात्रवृत्ति में तीसरी रैंक पाकर अच्छे स्कूल में दाखिला मिला. वहां से शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढे.
भोपाल के मौलाना आजाद टेक्नलौजी कालेज से आर्किटेक्ट में बीआर्क किया. आईआईटी रूढकी से एमआर्क करने के बाद इसरों में सांइटिस्ट के रूप में अपना कैरियर शुरू किया. वहां से भोपाल के मौलाना आजाद कालेज औफ टेक्नॉलौजी में प्राध्यापक के रूप में तैनात हो गये. जहां से उन्होने सिविल सर्विसेज की तैयारी की. पहली बार असफल होेने के बाद हार नही मानी. 1995 में वह सविल सर्विसेज में चुने गये. जम्मू-कश्मीर कैडर मिला. 1998 में वह उत्तर प्रदेश आये और यहां विभिन्न प्रशासनिक पदों पर रहते खुद की एक अलग पहचान बनाई. आज भी उनके जीवन में बेहद सरलता और सहजता है. वे घूमने फिरने, कविताएं लिखने व किताबे पढने का शौक रखते है. चिडियों के कलरव व नदियो के कलकल ध्वनि को सबसे अच्छा संगीत मानते है. मुकेश मेश्राम का व्यकितत्व इंजीनियरिग और कला साहित्य का अदभुत संगम है. पेश है उनके साथ एक खास बातचीत के प्रमुख अंश :-