हीथ्रोहवाई अड्डे पर अपने इकलौते बेटे संभव के साथ एक भारतीय लड़की को देख कर मैं चौंक गई. कौन होगी यह लड़की? संभव की सहकर्मी या उस की मंगेतर. जिस का जिक्र वह मुझ से ईमेल या फोन पर अकसर किया करता था? यहां पर भी तो कई भारतीय परिवार बसे हैं. मेरी उत्सुकता संभव की नजरों से छिप नहीं पाई थी. उस लड़की से हमारा परिचय करवाते हुए उस ने सिर्फ इतना ही बताया कि उस का नाम मुसकान है. संभव की फर्म में ही कंप्यूटर इंजीनियर है.
मुसकान का चेहरा कुछ जानापहचाना सा लगा. गोरा रंग, तीखे नैननक्श, लंबी छरहरी काया. बेहद सादे लिबास में भी गजब की आकर्षक लग रही थी.
सामान आदि कार में रखवा कर संभव दफ्तर के लिए निकल गया. दफ्तर में उस की महत्त्वपूर्ण मीटिंग थी, जिस में उस की मौजूदगी अनिवार्य थी. मुसकान ने हमें संभव की कार में बैठाया. हवाईअड्डे से घर तक जितने भी दर्शनीय स्थल थे उन से वह हमारा परिचय करवाती जा रही थी. मैं उस के हावभाव, बात करने के अंदाज को तोल रही थी. अतुल भी शायद यही सब आंक रहे थे.
घर पहुंच कर, मुसकान ने चाय व नाश्ता बनाया. ऐसा लगा, वह यहां, यदाकदा आती रहती है. तभी तो उस के व्यवहार में जरा सा भी अजनबीपन नहीं झलक रहा था. उस के बाद उस ने खाना बनाया. आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित रसोई में खाना बनाना कोई बड़ी बात नहीं थी. बड़ी बात थी हमारी पसंद का भोजन. उस के हाथों का बना शुद्ध भारतीय भोजन खा कर मन प्रसन्न हो उठा.