अब तक की कथा :
एक ओर ग्रहों की शांति करवाई जा रही थी, विवाहिता पत्नी से मां अपने बेटे की रक्षा करना चाहती थीं, दूसरी ओर नैन्सी गर्भवती थी. दोहरे मापदंडों को तोलतेतोलते दिया थक चुकी थी. धर्म ने दिया के समक्ष बहुत सी बातों का खुलासा किया था और वह स्वयं भी इस चक्रव्यूह से निकलने का मार्ग तलाश रहा था. तभी अचानक धर्म का मोबाइल घनघना उठा.
अब आगे...
मोबाइल स्क्रीन पर नंबर देख कर धर्म बोला, ‘ओहो, ईश्वरानंद है,’ कहने के साथ ही उस का मुंह फक पड़ गया, ‘‘जी, कहिए.’’ ‘‘कहिए क्या, अगर खाना, पीना, घूमना हो गया हो तो आ जाओ, धर्म. ऐसे नहीं चलेगा. मेरी बात हो गई है रुचि से. उन्होंने दिया को रात में रुकने की इजाजत दे दी है,’’ आदेशात्मक स्वर में उन्होंने कहा. धर्म दिया को सबकुछ सुनाना चाहता था, इसलिए स्पीकर पहले ही औन कर दिया था.
‘‘जी, अभी वह मन से तैयार नहीं है कीर्तनभजन के लिए. और...’’
‘‘तो करो उसे तैयार. तुम्हारा काम है यह. तुम्हें उस के पीछे लगा रखा है. ले के तो आओ, फिर देखेंगे,’’ उन्होंने फोन बंद कर दिया. दिया रोने लगी.
‘‘देखो दिया, रोने से तो कुछ नहीं होगा. बहुत सोचसमझ कर, पेशेंस रख कर चलना होगा, तभी कोई रास्ता निकल पाएगा. मैं कितनी बार तुम्हें समझा चुका हूं.’’
‘‘तो मैं अपनेआप को उन की गोद में डाल दूं? मेरा अपना कुछ है ही नहीं? कोई अस्तित्व नहीं है मेरा?’’
‘‘नहीं, दिया, तुम्हारा अपना अस्तित्व क्यों नहीं है. पर तुम भी समझती हो इस जाल के बंधन को. निकलेंगे, बिलकुल सहीसलामत निकाल लूंगा मैं तुम्हें यहां से. पर अभी शांति से जैसा मैं कहता हूं वैसा करती चलो. मैं तुम पर आंच नहीं आने दूंगा. मुझ पर भरोसा करो, दिया.’’