अब तक की कथा :
नील ने दिया को पसंद कर लिया था. दिया को भी नील अच्छा ही लगा था. दादी कन्यादान करने के बाद मोक्षप्राप्ति के परमसुख की कल्पना से बहुत प्रसन्न थीं. दिया की मां कामिनी शिक्षित तथा सुलझे हुए विचारों की होने के बावजूद दिया के पत्रकार बनने के सपने को बिखरते हुए देखती रह गईं. विवाह के पश्चात नील जल्दी ही लंदन लौट गया और दिया अनछुई कली, मंगलसूत्र गले में लटकाए ‘कन्यादान’ के अर्थ को समझने की नाकाम कोशिश में उलझी रह गई.
अब आगे...
उन दिनों दिया का दिमाग न जाने किन बातों में घूमता रहता. इस बीच एक और घटना घटित हो गई जिस ने दिया को भीतर तक हिला कर रख दिया. दिया की एक सहेली थी-प्राची. दिया की सभी सहेलियां लगभग हमउम्र थीं परंतु प्राची 3 वर्ष बड़ी थी दिया से. पढ़ने में बहुत तेज थी वह, लेकिन बचपन में कोई बड़ी बीमारी हो जाने के कारण उस के 3 वर्ष खराब हो गए थे. पिता की मृत्यु हो गई, मां काम करती थीं परंतु 3 बच्चों का पालनपोषण करने में ही उन की आर्थिक स्थिति डांवांडोल हो गई थी.
मध्यवर्गीय यह परिवार अपनों द्वारा ही सताया गया था. प्राची व उस की बहनें जब छोटी थीं तब ही उस के पिता किसी दुर्घटना में चल बसे. बड़े ताऊजी ने उन के हिस्से का व्यवसाय ऐसे हड़प लिया मानो वे अपने भाई के जाने की ही प्रतीक्षा कर रहे थे. तभी प्राची बीमार पड़ी और सही इलाज न होने के कारण एक लंबे समय तक बीमारी का शिकार बनी रही. मां ने जवानी में पति खो दिया था, सो उन्हें 3 बच्चों का पालन करने के लिए नौकरी करनी पड़ी. प्राची घर में सब से बड़ी थी, उस के पीछे उस की 2 छोटी बहनें थीं. घरगृहस्थी की परेशानियों से जूझतेजूझते मां को बस अपनी बेटियों की चिंता बनी रहती. उन का सोचना था कि उन्होंने जिंदगी में सभी सगेसंबंधियों को अच्छी तरह परख लिया है. अब उन का स्वास्थ्य भी डांवांडोल ही रहता, सो उन को अपनी बेटियों के विवाह की चिंता सताती. प्राची की मां दिया के घर भी आयाजाया करती थीं. वे दिया की मां व दादी के पास बैठ कर अपने मन का बोझ हलका करतीं और बच्चियां दिया के साथ खेलतीं, गपशप मारतीं.